कविता जो नही बन पाई…..

कई शब्द हैं और कुछ भावनाएं,
सोचती हूं एक कविता बन जाये!

कुछ कठिन शब्द हैं, कुछ सरल,
कुछ वाक्य गड्डमगड्ड हैं तो कुछ विरल!

अक्षर सारे आ गये, स्वर भी सब यहीं हैं,
मात्राएं सब ये रहीं, चिन्ह भी यहीं कहीं हैं!

कहीं “अल्प विराम”  ( , ) मुंह छिपाये पडा है,
तो पास मे “पूर्ण विराम”  (
। ) खडा है!

“चन्द्र- बिन्दु”  ( ँ ) चिल्ला रहा- बताओ कहाँ लग जांउं?
’माँ ’ के साथ  लगाओगी? या चाँद’ पर चढ जाउं?

उधर देखती हूं, “बिन्दी”  ( . ) इठला रही,
“डैश” ( – ) भी कहीं लग जाने को बहला रही!

” अवतरण चिन्ह” ( ” ” ) कहे मुझे कहाँ लगाओगी?
“कोष्ठक”  (  ) भी पूछ रहा- मुझमे किसे बिठाओगी?

“प्रश्न वाचक” ( ? ) चिन्ह कहे- बताओ क्या पूछना है?
या कि तुम्हे बस ” विस्मय” ( ! ) मे ही रहना है!

सब कुछ है यहां, पर संयोजन नही हो पाता,
वाक्य रचना ठीक है, पर भाव कहीं खो जाता!

शब्द अलट- पलट किये मात्राएं लगाईं!
फ़िर भी एक अच्छी कविता नही बन पाई!!

————

Published in: on जुलाई 11, 2009 at 5:11 अपराह्न  Comments (12)  

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12 टिप्पणियां टिप्पणी करे

  1. ये लो आखिर न बनते हुये भी बनी तो कविता ही 🙂

  2. ये जो शब्दो का ताल मेल है ना इसी को कविता कहते है
    और वो आपने इतने बेहतरीन ढंग से पिरोया है की क्या कहूँ,
    आप कहती है कविता बन नही पाई.. अरे कविता बनी और एक बेहतरीन कविता बन गयी..

    बधाई..हो!!!!!

  3. कविता के हर द्वन्द पर लिखा खूब विन्यास।
    अच्छी कविता के लिए करते रहें प्रयास।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    http://www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

  4. लाज़बाव ………….भाव और शब्द का सुन्दर समायोजन ………….जो रचना को बेहतरीन बना दिया है …………खुबसूरत………..

  5. यह उहा पोह ही कविता की जन्मदात्रि हो गई..काश!! सब ऐसे ही उलझ जायें तो ऐसी ही बेहतरीन रचनाऐं पढ़ने मिलें.

    बढ़िया है, बधाई.

  6. कविता कब है पूर्णविराम और चन्द्रबिन्दु का.
    वह तो अंश है अपार विराट सिन्धु का.
    ====
    तभी तो कविता न बनते बनते भी बन गयी.
    बहुत खूब

  7. good

  8. कविता लिखने के पहले उसका ड्राफ़्ट बनाते हैं कवि लोग। वो काम तो अच्छा हो गया। अब कविता भी समझ लीजिये बन ही गयी। दुबारा मात्रा, अल्पविराम आदि को सजा लीजिये बस हो गया काम! अच्छा लगा इसे पढ़ना! 🙂

  9. Ye lo…na na karte karte kavita to likh hee diya ab aur kya kasar reha gayee janab jo ye kavita na ban ne paayee ka gham mana rahe hein 🙂
    Bahut acchi lagi aur sadgi se bharpoor 🙂
    zorr-e-kalam aur jyada
    Cheers
    Dawn

  10. Kavta jab banni hoti hai to ban jati hai aur kabhi lakh koshishon ke baad bhi muqammal najin ho pati !

  11. आप सभी की टिप्पणियों के लिये खूब सारा धन्यवाद!

  12. अच्छी लगी कविता. बधाई स्वीकारें.


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